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चार दिवसीय नाट्योत्सव के अंतिम दिन वंस अगेन नाटक को दर्शकों ने खुब सराहा, जमकर की लोगों ने तारीफ

संवाददाता – शिवाजी राव

पुर्णिया – श्रेष्ठ भारत एक भारत के सपने को साकार करता हिंदुस्तान की विभिन्न प्रांतों की विभिन्न भाषाओं को एक साथ सुनने और समझने का मौका मिला।

वहीं एक दूसरे की सांस्कृति और आज परिवेश को बेहतर ढ़ंग से अन्य राज्यों के कलाकारों ने जो अपनी प्रस्तुति दी है वे काबिले तारिफ हैं।

उक्त बातों कलाभवन सुधांशु रंगशाला में आयोजित चार दिवसीय नाट्योत्सव के अंतिम दिन पूर्वी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र कोलकाता के उप निदेशक डॉ तापस कुमार सामंत्रे ने कही।

उन्होंने बताया कि पूर्वी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र कोलकाता एवं कलाभवन नाट्य विभाग के सहयोग से आयोजित इस चार दिवसीय नाट्योत्सव में उड़िया, आसामी, बंग्ला एवं हिंदी भाषाओं में देश के कलाकारों के ने जो प्रस्तुति दी उसे पूर्णियावासियों ने काफी पसंद किया और सराहा।

वहीं मौजूद दर्शकों ने विभिन्न राज्यों के निर्देशकों से कई सवाल जवाब किए और कलाकारों की जमकर तारिफ की।
कलाभवन नाट्य विभाग के सचिव सह नाट्योत्सव के कोर्डिनेटर विश्वजीत कुमार सिंह ने कहा कि कला की कोई विशेष भाषा नहीं होती है कला और कलाकार तो मानवीय संवेदनाओं की बीच की कड़ी होती है जो अपने प्रदर्शन के माध्यम से लोगों को प्रेरित करने और समझाने की कोशिश करते हैं।

श्री सिंह ने यह भी जानकारी दी कि भारत में कुल 121 प्रकार की भाषाएं बोली जाती है। जिनमें महज 22 भाषाओं को मान्यता प्राप्त हैं। मराठी, आसामी, हरियाणवी, नेपाली, तमिल, बंगला, गुजराती, पंजाबी, उड़िया आदि विभिन्न भाषाओं के कलाकारों के साथ जुड़कर कलाभवन नाट्य विभाग के रंगकर्मीयों को उनकी संस्कृति को समझने का मौका अबतक मिल चुका है।

इसका श्रेय उन्होंने पूर्वी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र कोलकाता एवं उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र प्रयागराज संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार को देते हैं। सांस्कृतिक आदान प्रदान से ही एक राज्य का दूसरे राज्य से बेहतर संबंध स्थापित होता है।

नाट्योत्स्व की पूरी व्यवस्था रंगकर्मी अंजनी कुमार श्रीवास्तव, विधि व्यवस्था में शिवाजी राम राव, राज रोशन, बादल झा, चंदन, अभिनव आनंद, मयूरी आदि कलाकार को भी डॉ तापस कुमार सामंत्रे ने धन्यवाद देते हुए कहा है इस महोत्सव में इन सबों का योगदान महत्वपूर्ण है।

पूर्वी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र कोलकाता के निदेशक गौरी बासु ने अंतिम दिन की प्रस्तुति के लिए बिहार के कलाकारों को शुभकामना एवं बधाई दी है।

बलात्कार की शिकार हुई एक स्त्री की आत्मा की कहानी है वंस अगेन (एक बार फिर) नाटक:-

यह एक ऐसी कहानी है जो वर्तमान समय में घटित होती रहती है। आज के परिवेश में कैसे छोटे शहरों से कड़ी मेहनत कर अपने बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए बड़े शहर के कॉलेजों में भेजकर उन्हें आईएएस, आईपीएस, डॉक्टर, इंजीनियर आदि बनाना चाहते हैं।

परंतु उन लड़कों के अंदर बड़े शहरों की मौज मस्ती काफभ् आकृष्ट करता है और पढ़ाई के दौरान बड़े शहरों के लॉज में रह रहे 4 साथी पढ़ाई के साथ साथ मस्ती में ध्यान देना शुरु करते हैं।

नशे की लत के कारण सभी साथी पढ़ाई के साथ साथ नशा और मस्ती में डुबने लगते हैं इस दौरान एक बेसहारा लड़की के साथ बलात्कार कर बैठते हैं।

उस बेसहारा लड़की के पिता अस्तपताल में खुन की कमी से जुझ रहा होता है। लड़की खून की तलाश में इधर-उधर भटकती है। इसी दौरान वे चारों लड़के इसके साथ जबरदस्ती करते हैं और लड़की एवं उसके बिमार पिता की मौत हो जाती हैं।

वहीं लड़की की आत्मा उन बलात्कारियों से बदला लेने के लिए एक मुर्ती में प्रवेश कर जाती है। फिर एक एक कर लड़कों के अपने प्रेम के जाल में फंसा कर मौत के घाट उतारने लगती है।

अंतत: तांत्रिक उस आत्मा को अपने वश में कर उन्हें मुक्ति प्रदान करता है।

भीखारी ठाकुर सम्मान से सम्मानित है एवं कई नाटकों की रचना कर चुके हैं निर्देशक —

नाटक वंस अगेन के लेखक एवं निर्देशक विश्वजीत कुमार सिंह भीखारी ठाकुर सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं। वे राष्ट्रीय स्तर के वरिष्ठ कलाकारों में शुमार हैं।

उनकी टीम कलाभवन नाट्य विभाग के सभी कलाकार राष्ट्रीय फलक पर अपनी पहचान बना चुके हैं। अबतक में उनके द्वारा कई दर्जन नाटकों में निर्देशक एवं बतोर अभिनेता अपनी बेहतर प्रस्तुति से अपनी पहचान बना चुके हैं।

जिनमें बेचारा कॉमन मैन, बगिया बाछाराम, कपंनी उत्साद, माटी गाड़ी, थैंकु बाबा लोचन दास, सवा सेर गेंहु, पागल थाना, सलीम तोतला आदि दर्जनों नाटक शामिल हैं।

वहीं उनके द्वारा लिखित नाटकों में धमाल मचाने वाले नाटक पागल थाना एवं वंस अगेन आदि शामिल हैं।

इस नाटक में अभिनव आनंद, मयंक रौनी, अंजनी कुमार श्रीवास्तव, चंदन कुमार, खुश्बू कुमारी, ज्योति कुमारी, बादल झा, आशुतोष कुमार आदि ने अपनी बेहतर प्रदर्शन से दर्शकों का भरपुर मनोरंजन किए।

निर्देशक विश्वजीत कुमार सिंह, रुप सजावट में किशोर कुमार गूल्लु दा, संगीत में मंतोष कुमार एवं मयंक रौनी व आदिती कुमारी, मंच व्यवस्था में शिवाजी राम राव एवं राज रौशन, लाईट व्यवस्था में समीर कुमार दास कटिहार, व्यस्थापक में कुदंन कुमार सिंह, सह निर्देशक अंजनी कुमार श्रीवास्तव आदि शामिल है।

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