सदर अस्पताल के मेडिकल काॅलेज बनने के बावजूद भी मरीजों को किया जा रहा रेफर
संवाददाता – शिवाजी राव
पुर्णिया – जिले के सदर अस्पताल परिसर स्थित तीन सौ करोड़ की लागत से बनने वाले मेडिकल काॅलेज लगभग तैयार हो चुका है। जिसमें सभी तरह के स्पेशलिस्ट को मिलाकर कुल 36 डाॅक्टरों की प्रतिनियुक्ति भी कर दिया गया है।
इन सभी डाक्टर, नर्स व स्वास्थ्य कर्मियों को पुराने मानदेय के जगह मेडिकल कॉलेज द्वारा निर्धारित मानदेय मिलना शुरू हो गया है। लेकिन सिस्टम वही पुरानी घसीट पीटी सदर अस्पताल वाले है।
मेडिकल कॉलेज के इमरजेंसी वार्ड में हर रोज करीब 150 से भी ज्यादा मरीज इलाज के लिए आते हैं। जिसमें ज्यादातर गंभीर रोग से ग्रसित और एक्सीडेंटल मरीज रहते हैं। सदर अस्पताल से मेडिकल कॉलेज बन गया लेकिन डाक्टरों की आदत वही पुरानी सदर अस्पताल वाले है।
एक्सीडेंटल और गंभीर रोगी को हायर सेंटर के लिए रेफर कर अपनी जान छुड़ा लेते हैं। सुत्रों की माने तो इमरजेंसी वार्ड से सिर्फ हर रोज 20 से 30 के संख्या में रोगी को हायर सेंटर के नाम पर रेफर किया जाता है. यह मेडिकल कॉलेज सिर्फ नाम के लिए ही रह गया है।
आम नागरिकों के लिए कालेज में वेंटिलेटर व आईसीयू की सुविधा नहीं
मेडिकल कॉलेज में मरीजों की सुविधा और इलाज के लिए अलग से सात बेड का आईसीयू और पांच वेंटिलेटर स्थापित किया गया है। कोरोना काल में यह वार्ड 24 घंटे मरीजों से भरा रहता था।
वार्ड में अलग चिकित्सक, टेक्निसियन, नर्स और स्वास्थ्य कर्मियों की व्यवस्था की गई है। कोरोनाकाल के बाद से अब तक एक भी आम नागरिकों को आईसीयू व वेंटिलेटर की सुविधा नहीं दिया गया है। आलम यह है कि यह वार्ड विरान पड़ा हुआ है और डाक्टर एवं स्वास्थ्य कर्मी बैठ कर वेतन ले रहे हैं।
आईसीयू और वेंटिलेटर के लिए लोगों को जाना पड़ता है बाहर
मेडिकल कॉलेज का आलम यह है कि कालेज में आईसीयू व वेंटिलेटर होते हुए भी मरीज को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। आईसीयू व वेंटिलेटर वार्ड सिर्फ शोभा का वस्तु बनकर रह गया है।
बाहर निजी अस्पतालों में लोगों से आईसीयू व वेंटिलेटर सुविधा के नाम पर मनमानी फीस वसूले जाते हैं। मेडिकल कॉलेज के अधिक्षक डा विजय कुमार बताते हैं कि मेडिकल कॉलेज अभी पूर्ण रूप से तैयार नहीं हुआ है। इसलिए मरीजों को हायर सेंटर के लिए रेफर कर दिया जाता है।