दुख में सुख निकालने की कला का नाम ही विधायक चिंतन है-साध्वी कनकप्रभा
संवाददाता – शिवाजी राव
हर मनुष्य की कुछ आकांक्षाएं होती है। उनमें सबसे बड़ी आकांक्षा है सुख, शांति एवं आनंद की उपलब्धि। उक्त बातें महिला मंडल मधुवनी भट्ठा तेरापंथ भवन में साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने कही।
उन्होंने यह भी बताया कि सुख कहां है। इस प्रश्न पर विचार करने से पहले यह जानना जरूरी है कि सुख किसके हाथ में है।
यदि किसी दूसरे के हाथ में है तो उसके लिए किया जाने वाला कोई भी प्रयत्न कारगर कैसे होगा और यदि वह अपने ही हाथ में है तो मनुष्य दुखी क्यों है।
उन्होंने बताया कि सुख पदार्थो में नहीं बल्कि अपने भीतर है।
सुख मनुष्य के हाथ में है, पर उसका संबंध उसके चिंतन से है। जिसके के दो रूप हैं विधायक और निषेधात्मक ।
निषेधात्मक चिंतन दुख का मूल स्रोत है। वहीं सुख विधायक चिंतन की परिक्रमा करता है। व्यक्ति के सामने किसी प्रकार की परिस्थिति हो विधायक चिंतन दुख के बीच में दीवार बनकर खड़ा हो जाता है ।
किसी ने अपशब्द कह दिया अथवा अप्रिय व्यवहार कर दिया तो उस समय व्यक्ति यह सोच ले कि कोई बात नहीं, तो उसे दुख नहीं होगा।
अप्रिय परिस्थितियों में चिंतन का कोण होना चाहिए या भी बदल जाएगा। इस प्रकार दुख में सुख निकालने की कला का नाम ही विधायक चिंतन है। यह सुख, स्वास्थ्य सौभाग्य और सफलता का द्वार है।