उड़ीसा की प्रस्तुति व्याघ्र रोहन नाटक के साथ चार दिवसीय नाटयोत्सव का हुआ शुभारंभ
संवाददाता – शिवाजी राव
पुर्णिया – आजादी के 75 वें अमृत महोत्सव के शुभ अवसर पर पूर्वी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र कोलकाता संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार एवं कलाभवन नाट्य विभाग के सहयोग से चार दिवसीय नाट्योत्सव का शुभारंभ कलाभवन सुधांशु रंगशाला में शनिवार किया गया।
नाटयोत्सव की शुरुवात सर्वप्रथम दीप प्रज्जवलित कर एवं अतिथियों को सम्मानित कर किया गया। अपने संबोधन में स्थानीय विधायक विजय खेमका ने जानकारी देते हुए बताया की 60 वर्ष और उससे ऊपर के कलाकारों को अटल पेंशन योजना के तहत वृद्धा पेंशन दिया जाता है।
साथ ही उन्होंने आगामी रंगोली कार्यक्रम की जानकारी भी दी। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में सदर विधायक विजय खेमका, कलाभवन प्रबंध समिति सदस्य संजय कुमार सिंह, वरिष्ठ रंगकर्मी उमेश आदित्य, इजेडसीसी सदस्य एवं वरिष्ठ रंगकर्मी मिथिलेश राय आदि सहित दजर्नों लोग उपस्थित थे।
वहीं मंच संचालन कुंदन कुमार सिंह, कलाकारों का स्वागत रंगकर्मी अंजनी कुमार श्रीवास्तव, विधि व्यवस्था में शिवाजी राम राव, राज रोशन, बादल झा, चंदन, अभिनव आनंद, मयुरी आदि कलाकार उपस्थित थे।
कार्यक्रम के दौरान केंद्र के डिप्टी डायरेक्टर तापस कुमार सामंत्रे ने कहा कि पूर्णिया जिला कला सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए काफी प्रचलित है। रेणु की इस धरती की एक अलग अपनी अनुठी पहचान है।
अपने संबोधन में श्री सामंत्रे ने यह भी कहा कि देश के कोने-कोने से कलाकारों द्वारा विभिन्न प्रकार की सांस्कृति और रिवाजों को लोगों के सामने प्रस्तुत करना और युवा निर्देशकों सहित कलाकारों को मौका देने का कार्य पूर्वी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र कोलकाता लगातार करती आ रही है।
इस प्रकार के आयोजनों से भारत के विभिन्न प्रांतों की सांस्कृतिक विरासत को समझने का मौका मिलता है और एक भारत श्रेष्ठ भारत के सपना साकार होता है। वहीं कलाभवन नाट्य विभाग के सचिव सह कार्यक्रम कोर्डिनेटर विश्वजीत कुमार सिंह ने कहा कि यह हम सभी पूर्णियावासियों के लिए गौरव की बात है कि जिले में भारत से आए विभिन्न राज्यों के कलाकार अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इस प्रकार के आयोजनों से विभिन्न राज्यों से हमारा सांस्कृतिक संबंध स्थापित होगा और हम कलाकार एक दूसरे के संस्कृति एवं कला को समझ पाएंगे।
वहीं पूर्वी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र कोलकाता के निदेशक गौरी बासु ने आज के इस कार्यक्रम की सफलता की में उड़ीसा के सभी कलाकारों को शुभकामना देते हुए आयोजन सदस्यों का बधाई दी है।
नाटक के माध्यम से अहंकार एवं झुठी शान को त्यागने का दिया संदेश-
पदम् भुषण सम्मान से सम्मानित लेखक मनोज दास द्वारा रचित व्याघ्र रोहन नाटक जिसका अर्थ होता है बाघ की सवारी। इस नाटक में राजा के बाग- बगीचे एवं जंगलों में ब्राह आता है और सभी फसलों एवं बगीचे को तहस नहस कर देता है।
जिसे लेकर राजा ब्राह को पकड़ने के लिए फांस तैयार करता है। और एक उसमें एक बाघ फंस जाता है। बाघ के फंसते ही राजा एवं उसके मंत्री एवं प्रशासक की सवारी करने को लेकर आपस में बहस करने लगते हैं और सभी अपनी दावेदारी करने लगते हैं।
इसी दौरान राजा गुस्सा जाता है और सभी को फटकारते हुए कहता है की राजपाट मेरा, जंगल, बाग-बगीचा मेरा और बाघ के लिए फांस बनाई मैंने इस लिए बाघ की सवारी सबसे पहले मैं ही करुंगा।
किंतु राजा जैसे की बाघ की सवारी के लिए कोशिश करने लगा वैसा ही उसका बुढ़ा शरीर और बाघ के फुर्तीलेपन ने राजा के सभी मनसुबे पर पानी फेर दिया और राजा बाघ सवारी नहीं कर सका।
इस राजा की प्रतिष्ठा को आधात पहुंचा और राजा ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया। जिसके फलस्वरुप राजा अपनी अंहकार और झुठी शान साबित करने के लिए राज्य के उतराधिकारी एवं अपने पुत्र युवा राजकुमार को यह कहकर आमंत्रित किया कि बाघ की सवारी हमारी संस्कृति और राजधर्म से जुड़ा हुआ हमारी एक परंपरा है जो हर राजा को निभाना होता है।
यह बात सुनकार युवा राजकुमार गुस्सा जाते हैं और राजा को यह बताते हुए की राजा का धर्म प्रजापालन में होता है। प्रजा की खुशहाली ही एक अच्छे राजा का राजधर्म है। इसलिए वे अपने झुठे अहंकार और झुठी शान को त्याग दें। लेकिन राजा को राजकुमार की बातों का कोई असर नहीं होता है और उसे जबरदस्ती बाघ की सवारी करने के लिए भेज देता है।
जिसके बाद राजा अपने मंत्रियों को राजकुमार की स्थिति का पता लगाने भेजते हैं। किंतु घटना स्थल पर न तो बाघ मिलता है और न ही राजकुमार, केवल खुन से लथपथ राजकुमार के वस्त्र एवं आभुषण मिलते हैं।
जिसके देखते राजा का भ्रम टूट जाता है और यह ज्ञात होता है कि झुठे शान एवं अहंकार से किसी का भला नहीं होता। इसी दौरान पुत्र वियोग में राजा की अचान मौत हो जाती है और इस प्रकार नाटक का समापन होता है।
विस्मिल्ला खां सम्मान से सम्मानित नाटक के निर्देशक नलिनि निहार नायक ने इस कहानी के माध्यम से समाज में व्याप्त बाघ रुपी अहंकार एवं झुठी शान को बतालाने की कोशिश की है।
जिसके दम पर मौजूदा राजनीति पूरे समाज को छिन्न भिन्न् कर रहा है। समाज को मैसेज देते हुए यह नाटक बतलाता है कि अहंकार व्यक्ति और समाज का सबसे बड़ा दुश्मन है। एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए अहंकार और झुठे शान का त्याग करना बेहद जरुरी है।
इस नाटक में प्रज्ञा, सुनंदा, स्वरुप, चिन्नमय, सुब्रत, पंकज, राहुल, बापी, प्रज्ञादत्त, शिली, शुभांकर, शशधर आदि कलाकार शामिल हैं।
वहीं संगीत पक्ष से कैलाश सेनापति, सेट से प्रज्ञादत्ता साहु, शब्द से जसवंत, नारायण राय, मंच संचालन में परिहा, लाईट एवं कोरियग्राफी व डिजाईन में निर्देशक नलिनि निहार नायक आदि कलाकार शामिल थे।